नई दिल्ली. आवाज कानों में पड़ते ही उसकी पहचान जेहन में खुद-ब-खुद दस्तक दे जाती है। निगाहें खुद-ब-खुद टकटकी लगाने लगती हैं। यह है बड़े डील-डौल और एक खास लुक वाली रॉयल एनफील्ड की 'बुलेट'। लेकिन आज से 20 साल पहले हालात बिल्कुल इतर थे। 119 साल पुरानी रॉयल एनफील्ड को ट्रैक्टर बनाने वाली पैरेंट कंपनी आयशर मोटर्स ने बंद करने का फैसला ले लिया था। वजह थी कंपनी को हो रहा लगातार घाटा। उस वक्त कंपनी के चेयरमैन विक्रम लाल के 26 वर्षीय बेटे सिद्धार्थ लाल ने इसे प्रॉफिट में लाने के लिए दो साल का समय मांगा।
वादे के मुताबिक सिद्धार्थ ने दो साल में ही कंपनी को फिर से खड़ा कर दिया। साल 2000 में घाटे में चल रही एनफील्ड आज आयशर ग्रुप की सबसे ज्यादा लाभ देने वाली यूनिट है। 2014 में ग्रुप के कुल रेवेन्यू में एनफील्ड की हिस्सेदारी बढ़कर 80% तक पहुंच गई। 1955 में भारत आई इस कंपनी का टर्निंग प्वॉइंट 2000 में आया। कंपनी के सीनियर एक्जिक्यूटिव्स ने इसे बंद करने की सलाह दी। तब सिद्धार्थ ने कंपनी की कमान संभाली। युवाओं को फोकस में रखते हुए बुलेट में बदलाव किए। और फिर से रॉयल एनफील्ड मार्केट लीडर बन गई।
सेल्फ स्टार्ट, गियर साइड चेंज, कस्टमाइजेशन ऑप्शन जैसे बदलावों से दुनिया की बेहतरीन बाइक में शुमार हुई बुलेट
स्ट्रैटजी : ग्रुप का फोकस 15 के बजाय 2 कारोबार पर केंद्रित किया
जनवरी 2004 में सिद्धार्थ ने आयशर मोटर्स के सीईओ का पद संभाला। तब उनका ग्रुप 15 कारोबार में फैला था। उन्होंने तय किया कि वह 13 तरह के कारोबार से बाहर निकलेंगे। पूरा पैसा और ध्यान रॉयल एनफील्ड और ट्रक पर लगाएंगे। सिद्धार्थ कहते हैं उनके जेहन में सिर्फ एक सवाल था कि क्या हम 15 छोटे-छोटे कारोबार कर एक औसत कंपनी बनना चाहते हैं या फिर एक या दो कारोबार में रहकर मार्केट लीडर। इसका परिणाम यह था कि एक दशक के बाद 2013-14 में आयशर मोटर्स का रेवेन्यू 8,738 करोड़ रु. और 2018 में एनफील्ड की सालाना बिक्री 10 लाख पार गई।
टैलेंट हंट : दुनियाभर से इंडस्ट्री की टॉप प्रतिभाओं को हायर किया
रॉयल एनफील्ड को लोकप्रिय बनाने के लिए सिद्धार्थ ने हार्ले डेविडसन के पूर्व मैनेजर रोड रोप्स को नॉर्थ अमेरिका का प्रेसिडेंट बनाया। डुकाटी के डिजाइन टीम के पीरे टेर्ब्लांच को लाए। ट्रायंफ के हेड इंजन्स जेम्स यंग को ब्रिटेन में अपने साथ जोड़ा। ट्रायंफ के प्रोडक्ट प्लानिंग एंड स्ट्रैटजी हेड साइमन वारबर्टन को भी लाए। सिद्धार्थ अगस्त 2015 में एक साल के लिए दिल्ली से लंदन चले गए। लेस्टरशायर स्थित रॉयल एनफील्ड के नए आरएंडडी सेंटर के साथ काम किया।
मिनी कार की सफलता से आया बदलाव का आइडिया
1990 के दशक में जब सिद्धार्थ ब्रिटेन में पढ़ रहे थे उस समय मिड-साइज और बड़ी कारों की तुलना में छोटी कारों की डिजाइन अच्छी नहीं थी। इसके बाद मिनी कार आई। इसने पूरे परिदृश्य को बदल दिया। सिद्धार्थ एनफील्ड के साथ भी यही चाहते थे। उन्होंने लागत कम करने के लिए सभी एनफील्ड मोटरसाइकिलों को एक ही प्लेटफॉर्म पर बनाएंगे। आधे दशक में बिक्री छह गुना बढ़ी।
री-इनवेंशन के लिए युवाओं पर फोकस
सिद्धार्थ और उनकी टीम ने पाया कि मोटरसाइकिल का मतलब है लंबी दूरी को एंजॉय करना। उन्होंने तय किया दूसरे मार्केट या सेगमेंट में उतरने से अच्छा है कि मौजूदा ब्रांड को मजबूत करने की कोशिश की जाए। वे इस बात पर अड़े रहे कि बुलेट का मार्केट खड़ा करने में 10 साल और लग जाएं लेकिन वे इसे ही बेचेंगे। फिर कंपनी ने वर्ष 2001 में 18-35 साल के युवाओं को टारगेट करते हुए 350 सीसी बुलेट इलेक्ट्रा उतारी। इसे कई कलर्स और इलेक्ट्रॉनिक इग्नीशन के साथ लांच किया गया। इलेक्ट्रा से मिली कामयाबी के बाद 2002 में कंपनी थंडरबर्ड पेश की। ब्रेक्स और गियर की पोजीशनिंग नॉर्मल मोटरसाइकिल की तरह दी गई। पहले बुलेट के ब्रेक बाएं और गियर दाएं पैर में होते थे। वर्ष 2002 के बाद से कंपनी मुनाफे में पहुंची और एक के बाद एक बुलेट के नए वर्जन लाने लगी।
डू ऑर डाई डेडलाइन जैसे कड़े फैसले लेने पड़े :सिद्धार्थ ने सबसे पहले जयपुर का नया एनफील्ड प्लांट बंद किया। डीलर डिस्काउंट खत्म किया। सिद्धार्थ ने कुछ साल पहले कहा था कि उन्हें डू ऑर डाई डेडलाइन जैसे कड़े फैसले लेने पड़े थे।
आउटलेट्स पर ग्राहकों को अनुभव देने की कोशिश :सिद्धार्थ ने एनफील्ड की लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए रीटेल आउटलेट्स और मार्केटिंग पर ध्यान देना शुरू किया। इसके तहत ऐसे आउटलेट्स शुरू किए गए जहां पर ग्राहकों बेहतर एक्सपीरियंस दिया जा सके।
19 साल में सालाना बिक्री 10 लाख पहुंची :साल 2000 में एनफील्ड की सालाना बिक्री 24 हजार थी। सिद्धार्थ के प्रयासों के बाद महज 19 साल में सालाना बिक्री 10 लाख बाइक के पार हो गई।
लाल ने आयशर ग्रुप में कई पदों पर काम किया
- अक्टूबर 1973 में जन्मे सिद्धार्थ लाल आयशर मोटर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। रॉयल एनफील्ड बुलेट को फिर से ग्राहकों की पहली पसंद बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
- 1999 में आयशर ग्रुप जॉइन किया। आयशर ट्रैक्टर डिवीजन में विभिन्न पदों पर काम किया।
- 2000 में 26 साल की उम्र में रॉयल एनफील्ड के सीईओ बने थे।
रॉयल सफर : एनफील्ड की कायापलट के बाद आयशर मोटर्स के शेयर 46,080% बढ़े
साल 2000 में कंपनी के शेयर (3 जनवरी 2000) को 48.75 रुपए थे। अब एक शेयर की कीमत 22,512 रुपए है। इसके हिसाब से 19 साल में इन शेयर ने करीब 46,080% रिटर्न दिया है। कंपनी की इस सफलता में रॉयल एनफील्ड का बड़ा हाथ है। सिद्धार्थ कहते हैं, 'मैं मानता हूं कि मोटरसाइकिल ऐसी होनी चाहिए जो जीवनभर आपका साथ दे और इसे जब आप अपने बच्चे को सौंपे तो वे इसे पाकर खुश हों।' सिद्धार्थ ने कंपनी के 13 बिजनेस को बेचकर सारा पैसा मोटरसाइकिल और ट्रक बनाने पर लगाया। सिद्धार्थ के करीबी लोग बताते हैं कि उन्होंने बुलेट को बेहतर करने के लिए हजारों किमी इसे खुद चलाया। इसकी खामियों को दूर किया। ऐसा इसलिए किया ताकि उनके प्रोडक्ट की क्वालिटी सर्वश्रेष्ठ हो। इन सभी कदमों से एनफील्ड को बेहतर करने में मदद मिली।
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